13 tips to help parents deal with jealousy in kids

बच्चों को ईर्ष्या (Jealousy) से जूझने में कैसे मदद करें?

Jealousy in kids

13 tips to help parents deal with jealousy in kids

डॉ. स्वतन्त्र जैन
मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता

ऐसे ड्रेस-खिलौने, बंगले-गाड़ी, गर्ल/ब्वाय फ्रेंड, मेरे पास क्यों नहीं? उसके ग्रेड-माक्र्स, टैस्टिमोनियल-मैडल, नाम-प्रसिद्धि- मेरे से ज्यादा क्यों? बचपन से ही हम-सभी ईष्र्या के शिकार व शिकारी दोनों ही रहे हैं। अपने से ज्यादा कोई शक्ल-सूरत, रूप-रंग, साज-सज्जा, प्रशंसा-शोहरत, गुण-बुद्धि, तर्क-वितर्क, कला-सम्पन्नता, ऐशो-आराम या प्रसिद्धि-समृद्धि में हमसे थोड़ा भी बेहतर होने पर अक्सर हमसे सहन नहीं होता। मन ही मन हमें उससे ईष्र्या/जलन होने लगती है। अत: ईष्र्या बेहद सामान्य, किंतु यूनिवर्सल भाव है। इसके वशीभूत हो हम शालीनता, मानवीयता एवं बन्धुत्व की सारी सीमाएं-मर्यादाएं लांघकर हर तरह के रिश्ते को तार-तार करने में भी संकोच नहीं करते।


दोस्तों, हमारे बच्चे हमारी तुलना में कहीं ज़्यादा भावनात्मक संघर्ष से जूझ रहे हैं, जिसे वे हमसे कभी सांझा नहीं करते। क्यूंकि सोशल मीडीया व से उन्हें उनकी खा़मियों व असफलताओं को इंगित करते अनेकों संदेश मिलते रहते हैं जिनके कारण उनका संघर्ष कई अकल्पनीय व घिनौने अपराधों को जन्म देता है क्योंकि बहुत जल्द ही यह 'क्यों है की भावना 'कैसे गिराऊं, हटाऊं, बदनाम करूं में बदल जाती है।

क्या बच्चों की ईष्र्या को पहिचानने, निज़ात दिलाने व रचनात्मक ढंग से प्रकट करने के कोई कारगर उपाय नहीं हैं? बिल्कुल हैं, देखिये :

1. बच्चों की भावनाओं को सुने-समझे व गौर करें

Listen to them carefully

यदि आपका बच्चा किसी अस्वाभाविक जि़द्द के चलते किसी से चिढऩे-जलने लगे या किसी बच्चे की चमकदार भूरे बाल व मख़मली ड्रेस को देखते ही चिल्ला उठे कि 'मुझे भी ऐसी ही ड्रेस चाहिये तो क्या करेगे? ड्रेस तो आप दिलवा देंगे किंतु बाल तो कुदरती हैं, कहां से दिलवाएंगे? ऐसी गलत जि़द्द के कारण बच्चे को शर्मिंदा कर चुप कराने या डांटने के बजाय उसे पूर्ण सहानुभूति-पूर्वक सुनें-समझें व समझाएं।


2. अपने बच्चे को उनकी भावनाएं जताने के लिये प्रेरित करें :

Encourage them to express their emotions

बच्चे खुद अपनी ऐसी भद्दी भावना से परेशान होते हैं कि 'यह मेरे अंदर कैसी अजब सी भावना पनप रही है, मैं इससे सही ढंग से कैसे निपटुं?

इसलिये उन्हें अपनी भावनाएं सांझा करने के लिये उत्साहित करें, अन्यथा अपनी जलन व भद्दे व्यवहार को सही ठहराने के लिये वे दोस्तों की मदद से अपनी बदसूरत भावना को भी जायज ठहराने का प्रयास करेंगे।


3. 'ईष्र्या को कोई रुचिकर नाम दें :

 बच्चों को यह समझने-समझाने की कोशिश करें कि 'उनका लाडला ईष्र्या की भावना से ग्रस्त वह असली वाला बच्चा नहीं, बल्कि उसका कोई मास्क है। किंतु उसे अपने स्ट्रांग चरित्र व खूबियों के बलबूते उस मास्क को मात देनी है, खुद पर हावी नहीं होने देना। बेशक ईष्र्या कुछ ही पलों की मेहमान होती है परंतु उन पलों में यदि उसका सर्कट तोड़ा ना जाए तो बच्चा कुछ ऐसा भी कर सकता है कि उसके परिवार व उसकी ईज्ज़त मिट्टी में मिल जाए।


4. दूसरों की लाईन छोटी करने के बजाय अपनी लाईन लम्बी करना सिखाएं :

'बड़ी रेखा को बिना काटे अपनी छोटी रेखा को कैसे बड़ी करेंगे? 'सिम्पल- अपनी रेखा उससे बड़ी कर लो यही सिम्पल, पर गहरी बात हमें खुद समझकर बच्चों को समझानी है। ईष्र्या से दूसरों के प्रति द्वेष बढऩे से बच्चे-बड़े, सभी दूसरों को नीचे गिराने की कोशिश करते है। दूसरो को गिराने के बजाय उन्हें अपनी खूबियां बढ़ाने (लाईन लम्बी करने) को प्रेरित करें।


5. बच्चों का फोकस बदलने में मदद करें :

Help them to divert their focus towards better things

जब भी महसूस हो कि आपके लाडले किसी बच्चे के ज्यादा अच्छे ग्रेड, खेलों, संगीत या नृत्य में मैडल मिलने की वजह से दु:खी हैं; तो इससे पहले कि वे अपनी ईष्र्या-नाराजग़ी को दुश्मनी में तबदील कर उसे हानि पहुंचाए, उनकी खुद की खूबियों की तारीफ करें और उनके लक्ष्य में आगे बढऩे को प्रोत्साहित कर उनका फोकस बदले।

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6. खुद पेरेंट्स चीजों के बजाए खूबियों को महत्व देकर रोल-मॉडल पेश करें :

Skills are more important than materialistic things

हम खुद चीजों को अधिक महत्व देते हैं। आप अपने बच्चे के दोस्त के ग्रेड, ड्रेस, जूते, गहने, बंगले-गाड़ी के बजाय उसकी खूबियों व भावनाओं की तारीफ करें और बच्चों से भी कराएं। यदि दूसरों की प्रशंसा होने पर आप खुश होने की बजाय ईष्र्यावश उनकी आलोचना करते हैं तो आपको पहले खुद अपनी ईष्र्या से निपटने की ज़रूरत है।

7. भावनाओं के बजाय बच्चों के व्यवहार को शालीन बनाने पर ज़ोर दें :

किसी की प्रशंसा से ईष्र्या होना कुदरती मानवीय कमज़ोरी है जिससे बच्चे खुद परेशान रहते हैं। अत: उन्हें समझाएं कि 'बेशक ईष्र्या सदा तर्कसंगत नहीं होती और इसे कंट्रोल करना आसान नहीं, पर इससे निपटना सिखना ज़रूरी है। सभी पेरेंट्स का कर्तव्य है कि बच्चों के व्यवहार के गिर्द शालीनता की रेखा खींचें और ईष्र्या के प्रकटीकरन को बदसूरत व भद्दा होने से रोकें और उन्हें समझाएं कि, 'चाहे भावना कैसी भी हो, परंतु उन्हें औरों से बेहद खूबसूरती से पेश आना है, उनकी कमियॉं इंगित करके अपमानित नहीं करना।


8. बच्चों में स्वाभिमान व आत्म-गौरव जगाएं :

प्रतिस्पर्धात्मक युग में कुछ विशेष वर्गों/समुदायों में पेरेंटस सफलता पर कुछ ज़्यादा ध्यान देते हैं जैसे पढ़ाई, खेल, कला, नृत्य, संगीत या लोकप्रियता में। अगर बच्चे इनमें से किसी एक में भी खुद को सिद्ध नहीं कर पाते तो वे खुद से आगे निकलने वाले बच्चों से ईष्र्यावश कुछ अनहोनी कर सकते हैं। हम पेरेंटस को ऐसे बच्चों के आत्म-गौरव बढ़ाने पर अधिक बल देना चाहिये।


9. विरोधियों की खूबियों को तलाशने-स्वीकारने के लिये अभ्यास कराएं :

बच्चों में अपने विरोधियों की उपलब्धियों या खूबियों की सराहना करने की आदत डालने से गहरे व बेहतर संम्बंध बनते हैं। अच्छे कोच अपनी टीम-सदस्यों को विरोधी टीमों के खिलाडिय़ों की खूबियां तलाशने व सराहना करने के लिये प्रशिक्षित व प्रोत्साहित करते हैं। अत: आप भी बच्चे से उसके विरोधी की अच्छाईयां तलाशने और सराहने की प्रेरणा दें।


10. बच्चे की मानवीय एवं संवेदनशील भावनाओं को जागृत करें :

बच्चे की मार्मिक, कोमल, संवेदनशील भावनाओं को पहचानकर उन्हें उभारने का प्रयास करें जैसे, यदि उन्हें किसी का दर्द सहन नहीं होता तो उनकी अपनी मानवीयता की याद दिलाते हुए कहें कि, 'जानते हो, जिस दोस्त की प्रशंसा से तुम्हे भीतर ही भीतर जलन हो रही है, वह अंदर से कितना दु:खी है और उसे तुम्हारी कितनी ज़रूरत है? देखिये कि उस पर कैसा जादू सा असर होता है!


11. रोल-मॉडल की तलाश करें :

यह एक दुखद सच्चाई है कि कुछ लोगों के पास खुश एवं प्यार भरे परिवार होते हैं किंतु दूसरों के पास नहीं होते, कुछ के पास धन है तो दूसरों के पास नहीं, परंतु हमें वास्तविक कमी को मुखातिब होना है। अपने-अपने बच्चों को उन सब रोल-मॉडल से कनेक्ट करें जिन्होंने उनके जैसी या उनसे भी ज्यादा कठिनाईयों में दूसरों को हानि पहुंचाए बिना विजय पाई, फिर चाहे वे सेलिब्रिटी हों या कोई और!


12. दोस्तों से ईमानदारी से अपनी ईष्र्या-भावना सांझा करने में मदद करें :

कभी-कभी दो गहरे दोस्तों के बीच भी जलन की भावना आने लगती है। ऐसे में आप अपने बच्चे में उसके दोस्त के प्रति लेषमात्रा भी जलन का आभास होने पर उससे दोस्ती खोने का मुल्य समझाएं ताकि वो कह सके, 'मैं सचमुच तुम्हे चाहती हूं, पर पता नहीं क्यों, मुझे कुछ जलन सी भी हो रही है। यह कहते ही जलन खुद-बे-खुद खत्म हो जाएगी।

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13. तुलना करके रिजैक्टिड महसूस मत कराएं :

Do not compare your kid with other kids

कभी भी बच्चे की तुलना किसी अपने-पराये से मत करें। उसे समझाएं कि 'हरेक में अपनी-अपनी खूबियां हैं, जैसे अणु मैथ्स में निपुण है तो तुम फिजिक्स में। सबको अपनी-अपनी विशिष्ट खूबियों को चमकाना है। जब कभी आपकी लाडली आकर शान दिखाए कि 'देखो मैनें पदमा को हरा दिया तो उसे शाबाशी देते हुए यह समझाना आपका फर्ज है कि वे दोनों ही बहुत लायक हैं, कभी यह तो कभी वह, दोनो ही जीत सकते हैं, इसलिये अहंकार के बजाए ईश्वर का धन्यवाद करें।